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नमस्कार दोस्तों आज कुछ लिखने बैठा तो पाया की ये मेरा सौवां आलेख होगा, ये सोचकर ही दिल रोमांचित हो गया कि हमने भी 100 आलेख का आंकड़ा छू लिया ! समय का पता ही नही चला जब मैंने यहाँ लिखना शुरू किया था तो कभी सोचा नहीं था कि बहुत ज्यादा कुछ लिख पाउँगा , मगर मैं धन्यवाद देना चाहूँगा इस मंच का जिसने हम जैसे नौसिखिए और शौकिया लिखने वालों के लिए ये बेहतरीन मंच प्रदान किया, धन्यबाद देना चाहता हूँ अपने सभी साथियों का जो अभी लिख रहे हैं और जो किसी कारणवश अभी नहीं लिख रहे उनके प्रोत्साहन और प्यार का जिसने हमेशा मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया ! अब ऐसे मौके पर सोचने बैठा कि इस विशेष आलेख पर क्या लिखूं मैं ? तो मन से सिर्फ एक ही आवाज आई कि मेरी जिस मात्र भाषा हिंदी ने मुझे जो कुछ भी लिखने योग्य बनाया है, तो क्यूँ न आज उसी की चरण वंदना मैं कुछ लिखा जाए तो बस उसी प्रयास के तेहत हिंदी के प्रति मन मैं जो भी भावना आई उसको शब्दों मैं लिख दिया है… आप सब भी पढ़िए और अपनी भावनाओं से अवगत कराइए कि हिंदी जैसी विराट भाषा को शब्द देने के प्रयास मैं कुछ सफल हो सका या नहीं …….. !
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मान तू सम्मान तू , तुझसे ही स्वाभिमान है
भाषा की सिरमौर तू, तू राष्ट्र का अभिमान है
तू गध मैं तू पध्य मैं, तू रस, छंद अलंकार है
तूने लिखा इतिहास है, तू साहित्य का श्रृंगार है
तू वेदना संवेदना कहीं, लरजती नवयौवना
बल पे तेरे प्रकट करें मन की अपनी भावना
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देवी है तू ज्ञान की, तू देश की पहचान है
सांस है तू बोली की, भारत का तू सम्मान है
जन जन की तू जुबान है, हर भारतीय की आन है
जन्म से मिला हमें जो, तू प्रभु का वो वरदान है
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तू आज इतना कर जरा, हर लहू मैं जोश भर ज़रा
हिंदी है तू माँ-बोली है, फिर इतनी क्यूँ अकेली है
हम भूल गए कर्त्तव्य जो, कर्त्तव्य अपना अदा करें
झुका के शीश चरणों मैं तुझको नमन सदा करें
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आओ सब प्रण करें लौटायें हिंदी की पहचान हम
जो भूले हैं ऋण हिंदी का उनको जरा जगा दें हम
मात्र भाषा सिरमौर बने जो विश्व मैं चूमे गगन
अपनी हिंदी भाषा को अब इतना ऊँचे उठा दें हम
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जो भी यहाँ मैं शब्द लिखूं वो तेरा ही उपकार है
कैसे करूँ मैं वंदना, बस हृदय से सत्कार है
हे मेरी मात्र भाषा तेरी मुझपे रहे आशीष सदा
माँ शत-शत नमन तुझे, तेरा मुझपे जो उपकार है
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