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शरारत

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दोस्तों कभी – कभी सोचता हूँ कि मानव का जीवन क्या है, जीवन एक ऐसी पहेली है जो सदियों से अबूझ ही रही है और इसकी समीक्षा तो बड़े – बड़े ज्ञानी-ध्यानी नहीं कर सके तो हम जैसे तुच्छ प्राणी कैसे कर सकते हैं, इसलिए मैं मानवीय जीवन को छोड़कर मानवीय व्यवहार की समीक्षा करने का प्रयास यहाँ पर कर रहा हूँ, मानव के अंतर मैं निहित आदतों की समीक्षा करने की कोशिश कर रहा हूँ, यधपि ये काम भी अँधेरे मैं सुई ढूँढने जैसा ही है फिर भी चूँकि लिखने की सुई मेरे अंदर घुस गई है इसलिए थोडा प्रयास तो कर ही सकते हैं, इस सुई को ढूँढने और अपने मन के विचारों को बाहर निकालने का तो इसी तारतम्य मैं मैं भी काफी दिनों के बाद तन्हाई मैं किसी माशूका से बिछड़े माशूक की भांति गहरी सोच मैं मानवीय स्वभाव के गहरे समुद्र मैं उतरता चला गया और इस समुद्र मंथन के बाद मैंने हर मानव के व्यवहार मैं अनेकों भिन्नताएं पाई, कोई गुस्सैल है कोई हँसेल है, कोई नरम है तो कोई गरम है, कोई उदार है तो कोई कठोर है ! इतनी सारी भिन्नताओं के मध्य मैंने एक चीज सभी इंसानों मैं कॉमन पाई और वो है शरारत … आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर समुद्र मंथन मैं से मैंने निकाला भी तो क्या शरारत …. तो चौंकिये मत और मेरी बातों पर गौर कीजिये मनुष्य जब इस धरती पर जन्म लेता है तब रोते हुए आता है .. किन्तु जैसे जैसे वह बड़ा होता है उसकी शरारते आरंभ हो जाती है वह अपनी माँ के साथ खेलता हुए शरारत करता है कभी पिता के साथ शरारत करता है हाथ पैर चलाता है … और उसकी शरारतों का सिलसिला चल पड़ता है थोडा और बड़ा होता है अपने पड़ोस के बच्चों के साथ शरारत करता है .. घर का सामान तोड़ता है और माँ-बाप की झिडकी सुनता है किन्तु वह शरारत नहीं छोड़ता और खुश रहता है … कुछ समय बाद वह स्कूल जाता है क्लास मैं शरारत करता है अध्यापक की मार खाता है किन्तु अपनी शरारत नहीं छोड़ता और बहुत खुश रहता है, फिर बच्चा किशोर होता है यहाँ भी उसकी शरारत चरम पर होती है और जिंदगी मैं सबसे ज्यादा खुश भी इंसान शायद इस उम्र मैं ही रहता है, फिर धीरे धीरे इंसान बयस्कता को प्राप्त करता है, और पेशे और नौकरी मैं स्थापित होने के बाद विवाह सूत्र मैं बंध जाता है यहाँ भी पति – पत्नी की शरारतों के बीच उनका जीवन द्रुत गति से और खुशियों मैं गुजरता है … पर धीरे धीरे समय गुजरता है काम के बोझ से बढती जिम्मेदारियों के बोझ से रोज नए – नए लोगों से मिलने मिलाने से इंसान की ये शरारत कम होने लगती है और धीरे धीरे लुप्तप्राय हो जाती है … और जब इंसान के स्वाभाव मैं शरारत की जगह शराफत पूरी तरह से ले लेती है यहीं से इंसान की दिनचर्या और जीवन नीरस और औपचारिक सा होने लगता है ….. कई प्रकार के प्रयास करता है इंसान खुशियाँ पाने की किन्तु शराफत के आडम्बर का आवरण इतना भारी होता है कि इंसान उससे बाहर निकल ही नहीं पाता और जीवन मैं जो खुशियाँ उसे अबतक बिना कीमत चुकाए मिल जाती थीं अब वे उसे ऐशो-आराम पर लाखों खर्च करके भी नहीं मिलतीं क्यूंकि शायद उसकी शरारत कहीं दूर बहुत दूर चली गई उससे ………..

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तो दोस्तों मैं तो इस आत्ममंथन के बाद इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की जीवन मैं शराफत बहुत जरुरी है किन्तु शरारत का दामन भी कभी नही छोडिये … हाँ शरारत करते वक्त ये अवश्य ध्यान मैं रखना चाहिए कि आपकी शरारत कहीं शराफत का दायरा तो पार नही कर रही, इससे किसी के मन को ठेस तो नहीं पहुँच रही या किसी को भौतिक या आत्मिक नुकसान तो नहीं हो रहा … और हाँ शरारत करते वक्त रिश्ते और स्थान का अवश्य ध्यान रखें वर्ना शरारत के चक्कर मैं आपकी शराफत खतरे मैं पड़ जायेगी …. उदाहरणार्थ यदि आप शादी शुदा हैं और किसी ऐसी पार्टी मैं हैं जहाँ आपकी पत्नी और बॉस की भी पत्नी है और आपका मन शरारत करने का कर रहा है तो अपनी बीबी से ही करें बॉस की बीबी से नहीं वरना दिक्कत हो सकती है ! अंत मैं यही कहना चाहूँगा कि पता नहीं आप मैं से कितने लोग मेरे आलेख से सहमत होंगे किन्तु एक बात तय है कि कभी न कभी किसी न किसी उम्र मैं आप मैं से भी हर किसी ने किसी न किसी के साथ शरारत जरुर कि होगी या आपके साथ शरारत हुई होगी …. और दिल पर हाथ रखकर कहिये क्या उस शरारत को याद करगे आपका दिल आज भी प्रफुल्लित नहीं होता ? और यदि होता है तो अपनी शरारत यहाँ शेयर कीजिये और वही खुशी फिर से हासिल कीजिये ….. !

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