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दोस्तों जैसा कि हम सब जानते हैं, हमारा देश भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है, और हमारे देश के आम नागरिकों को पूर्ण स्वतंत्रता है, अपनी तरह से जीने की ! दोस्तों यूँ तो हमारे संविधान ने हमें कई प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं, जो कि एक आम नागरिक के हितों की रक्षा के लिए लिखित रूप से बनाये गए हैं, किन्तु क्या कभी आपने सोचा है हमारे लिखित संवैधानिक मौलिक अधिकारों के अलावा भी हमारे देश के, समाज के, घर परिवार के लोगों को कुछ ऐसे मौलिक अधिकार मिले हुए हैं, जो कि लिखित नहीं है, फिर भी पूरी तरह से हमारे जीवन मैं निहित हैं ! किन्तु संवैधानिक मौलिक अधिकारों और इन अधिकारों मैं थोडा सा फर्क हैं, ये अधिकार संविधान से नहीं अपितु नैतिक जिम्मेदारी से व्युत्पन्न होते हैं ! कंफयूसन … कंफयूसन …. अभी तक आपको शायद ही मेरी कोई बात समझ मैं आई हो, कि मैं किन नैतिक जिम्मेदारियों और मौलिक अधिकारों की बात कर रहा हूँ, तो
यहाँ पर मैं अपने कवि होने का थोडा सा फायदा उठाता हूँ
और इनके बारे मैं आपको उदाहरण सहित समझाता हूँ
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उदाहरण नंबर एक
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कि एक आम आदमी ने साल भर पसीना बहाया
जरूरतें फिर भी पूरी न हुई, इक्षाओं को बलि चढ़ाया
बड़ी मेहनत से जो थोडा बहुत पैसा बचाया
उस पर भी सरकार को टैक्स चुकाया
दूसरी तरफ एक मंत्री जी ने देश के पैसे को
मुफ्त का चन्दन समझ खूब लगाया
खुद भी मलाई छानी बच्चों को भी विदेश घुमाया
जनता की गाढ़ी कमाई को कुछ ऐसे ठिकाने लगाया
झोपड़ी से रातो रात शीशमहल बनवाया
इससे देश की जनता पर पड़ती दोहरी मार है
टैक्स चुकाना आम जनता की नैतिक जिम्मेदारी
और माल पर ताल ठोकना नेता का मौलिक अधिकार है
उदाहरण नंबर दो
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एक पिता ने अपनी बेटी को खूब पढ़ाया लिखाया
माँ ने भी उसको गृहस्थी का हर संस्कार सिखाया
करने निकला ब्याह तो दहेज दानव सामने आया
लड़के के बाप ने उसे अपना सुरसा सा मुंह दिखाया
लड़की के पिता ने फिर भी हिम्मत दिखाई
जीवन भर की पूंजी शादी पर लुटाई
फिर भी उस दहेज लोभी ने उसको फटकार लगाईं
जरा सी कमी पर क्यूँ मिलती लड़की के पिता को दुत्कार है
क्यूंकि बेटी को विदा करना उसकी नैतिक जिम्मेदारी
और दहेज समेटना बेटे के बाप का मौलिक अधिकार है
हे प्रभु ये कैसा संसार है ये कैसा संसार है
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उदाहरण नंबर तीन
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कि एक पति दिन भर का थका मांदा घर आया
पत्नी ने ठंडे पानी का गिलास उसकी ओर बढ़ाया
पति बेचारा अभी आधा गिलास ही गटक पाया
कि पत्नी ने उसे मुस्कुराते हुए झोला थमाया
बोली प्रिय आपको अभी बाजार जाना है
घर मैं सब्जी हुई खत्म लेकर आना
और सुनो 3G की तरह जरह FAST आना
और भिंडियां जरा नरम और कोमल सी लाना
पति मन ही मन कुछ बडबडाया
और जे जे की साईट सा धीरे से कदम बढ़ाया
आधे घंटे बाद चुन-चुन कर भिंडियां लाया
भिंडियां देखते ही पत्नी ने अपनी त्योरियां चढ़ाईं
बोली अरे ये कैसी भिंडियां उठा कर ले आये
लेडीज फिंगर की जगह जेंट्स अंगूठे सी ले आये
बैंगन से पति की भिन्डी सी पत्नी लगाती फटकार है
क्यूंकि अच्छी सब्जी लाना पति की नैतिक जिम्मेदारी
और फटकार लगाना पत्नी का मौलिक अधिकार है
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