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साथियों अभी पिछले कई दिनों से टी वी पर मैं किसी चोकलेट कम्पनी का विज्ञापन देख रहा हूँ, जहाँ पर एक परिवार रात का खाना खा रहा है, और खाने के बाद एक नन्ही सी प्यारी बच्ची से उसकी दादी उसे छेड़ते हुए मीठे के नाम पर उसकी चोकलेट मांग रही है, और वह प्यारी सी बच्ची अपनी चोकलेट न देने के बहाने बना रही है और पूरा परिवार उसकी प्यारी सी चोकलेट बचाऊ कोशिश पर हंस रहा है ! काफी अच्छा विज्ञापन लगा मुझे ये, मगर चूँकि मैं राईटर हूँ और ये विज्ञापन बार – बार मुझे कुछ सोचने पर मजबूर कर रहा था, और मैं काफी उतावला हो रहा था कि आखिर क्यों ये विज्ञापन मेरे जेहन से नहीं निकल रहा है, इस विज्ञापन से मेरे बचपन की कौन सी याद जुडी है जो मुझे याद नहीं आ रही है, मगर जब मैं रात को सोने लगा तब मैंने शांति से अपने अतीत के पन्ने पलटे तो मुझे मेरे बचपन मैं हिंदी की किताब नव भारती मैं पढ़ी हुई एक कहानी याद आई, तब मुझे समझ मैं आया की आखिर इस विज्ञापन और मेरी याद का क्या रिश्ता है ! हो सकता है आप मैं से भी कुछ लोगों ने ये कहानी पढ़ी हो मगर जब याद आ ही गई है तो अपना लेखक होने का फायदा उठाते हुए मैं आप सबको भी बचपन की अपनी ये पसंदीदा कहानी पढाता हूँ…..
( ये कहानी महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह से ली गई थी, और हो सकता है असली कहानी और मुझे इस वक्त जो कहानी याद आ रही है उसके मूल मैं उसके चरित्रों मैं कुछ अंतर हो क्योंकि कहानी मुझे अक्षरश याद नहीं इसलिए इसे कहानी का रूप देने के लिए कुछ शब्द मैंने अपनी ओर से भी जोड़ने का प्रयास किया है ! किन्तु कहानी का मूल सार आज भी मुझे याद है, जो कि यहाँ मैं प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हूँ. अत : कोई भी गलती होने पर क्षमाप्रार्थी हूँ .. )
किसी छोटे से गांव मैं एक छोटा सा प्यारा बच्चा हामिद अपनी बूढी दादी माँ के साथ रहता था! एक बार की बात है ईद आने वाली थी और इसलिए पास के गांव मैं मेला लगा, रविवार का दिन था गाँव के सारे बच्चे खुशी – खुशी मेला देखने के लिए तैयार हो रहे थे और अपने – अपने माता – पिता के साथ मेला देखने जाने वाले थे ! नन्हे हामिद का भी मन किया मेला देखने के लिए उसने अपनी दादी से कहा दादी मैं भी अपने दोस्तों के साथ मेला देखने जाऊंगा ! गरीब दादी के पास पैसे नहीं थे इसलिए उसने हामिद को समझाने का प्रयास किया किन्तु हामिद के जिद करने पर उसकी दादी ने अपने पास रखा अंतिम एक रुपया हामिद को देते हुए कहा बेटा ये रुपया बड़ी संभाल कर रखना और इसे अच्छी तरह से खर्च करना कोई अनाप – शनाप खर्च न करना ! जब तुझे भूख लगे तो कुछ पैसे खाने पर खर्च करना और बाकी पैसों से अपने लिए कोई खिलौना खरीद लेना ! मेले की अनुमति और रुपया पाकर हामिद की खुशी का ठिकाना नहीं रहा ! वह भी अपने मित्रों के साथ खुशी – खुशी मेला देखने चल दिया ! मेले मैं पहुंचकर सभी बच्चे खूब मजे कर रहे थे, जगह – जगह, खाने – पीने कि चीजें थीं और खिलौनों की दुकाने थीं सभी बच्चे कुछ न कुछ खा रहे थे और खिलौने खरीद रहे थे, हामिद का मन भी बहुत कर रहा था मगर हामिद के पास सिर्फ एक रुपया था और उसे अपनी दादी की सीख याद आ रही थी बेटा इसे बहुत सोच समझकर खर्च करना, इसीलिए हामिद ने अब तक अपना एक रुपया बचा कर रखा था, मेले मैं घूमते हुए हामिद को एक बर्तन की दुकान दिखाई दी ! हामिद उस ओर बढ़ चला उसने पूरी दुकान मैं देखने के बाद एक लोहे का चिमटा उठाया और दुकानदार से उसका दाम पूछा ! दुकानदार ने उसका दाम एक रूपए बताया मासूम हामिद बहुत मायूस हो गया, क्योंकि उसके पास सिर्फ एक ही रुपया था, और उसका जी चाह रहा था कि वह भी और बच्चों की तरह खाए – पिए और खिलौने ले, किन्तु वह अपनी दादी के लिए चिमटा भी खरीदना चाहता था क्योंकि हामिद की आँखों मैं तबे पर रोटी सेकती उसकी दादी का चेहरा आ रहा था जिसकी उँगलियाँ चिमटा न होने की वजह से रोज ही तबे से जल जाती थीं, इसलिए हामिद अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदकर उसकी उँगलियों को जलने से बचाना चाहता था ! मगर इसके लिए हामिद को अपनी खुशियों का त्याग करना पड़ेगा, एक तरफ हामिद की अपनी खुशिया थीं दूसरी ओर रह – रह कर उसकी दादी की जलती उंगलियों का ख्याल ! अंत मैं नन्हे हामिद ने वीरता दिखाते हुए, दुकानदार से वह चिमटा खरीद लिया, और शान से उसे अपने काँधे पर रखकर पूरे मेले मैं यों ही घूमता रहा ! शाम हो चली थी सभी लोग एक जगह एकत्र हो वापस गाँव की ओर लौटने लगे ! हामिद के सभी मित्र हामिद का मजाक उड़ा रहे थे कि उसने ये क्या ले लिया चिमटा ! कोई उसे मिटटी का शेर दिखाता, तो हामिद उससे कहता तुम्हारा ये मिटटी का शेर २ दिन मैं टूट जायेगा किन्तु मेरा चिमटा असली शेर से भी लड़ने का काम आएगा ! यों ही हंसी मजाक करते करते सभी बच्चे अपने गाँव वापस आ गए ! घर मैं हामिद की दादी बेसब्री से हामिद का इन्तजार कर रही थी, आते ही उसने हामिद से बड़े उल्लास से पूछा मेरे लाल ने मेले मैं क्या – क्या किया और अपने लिए कौन सा खिलौना ख़रीदा ? हामिद ने झट से चहकते हुए दादी के हाथ मैं चिमटा थमा दिया ! चिमटा देखते ही दादी आग – बबूला हो उठी , बोली कमबख्त ये क्या उठा लाया तेरे पास एक ही रुपया था फिर तूने ये चिमटा क्यों ख़रीदा ! इसका क्या करेगा तू और दादी ने हामिद का चिमटा गुस्से से दूर फेंक दिया ! मासूम हामिद ने चिमटा उठाया और फिर से अपनी दादी से लिपट गया और बोला दादी ये मैं अपने लिए नहीं आपके लिए लाया हूँ ! अब रोटी सेंकते बक्त कभी भी आपकी उँगलियाँ नहीं जलेंगी ! अपने पोते की बात सुनकर बूढी दादी की ऑंखें डबडबा उठीं, दादी अपने पोते के प्यार से भाव बिभोर हो उठी और हामिद को अपने कलेजे से लगा लिया ! बेटा इतने बड़े मेले मैं भी तू अपनी बूढी दादी को नहीं भूला ! और अपनी खुशियों का त्याग करके तुझे तेरी बूढी दादी की उँगलियों को जलने से बचाने के लिए चिमटा खरीद लाया ! बूढी दादी की आँखों मैं खुशी देखकर मासूम हामिद भी खुशी से चहक उठा और बोला दादी मुझे बहुत भूख लग रही है आज आप इसी चिमटे से सेंक कर मुझे रोटी खिलाना ! दादी ने एक बार फिर हामिद को अपने सीने से लगा लिया……..!
साथियों इस कहानी को जब भी याद करता हूँ और आज जब ये विज्ञापन देखता हूँ, तो सोचता हूँ क्यों, आखिर क्यों आज हम अपनी आने वाली पीढ़ी को हामिद जैसी त्याग और स्नेह की कहानियों से दूर और दूर करते जा रहे हैं, और आज के बच्चों को सिर्फ पाने की संस्कृति सिखा रहे हैं त्याग करने की नहीं ! इसका असर ये होता जा रहा है की समाज मैं आज हर कोई एक दुसरे से पाने की अभिलाषा रखता है, जिसकी बजह से आज समाज मैं काफी कुरीतियाँ फ़ैल रही हैं, यदि त्याग का एकांश भी व्यक्ति मैं बचपन से ही प्रवेश कर जाए तो वह ताउम्र उसको एक अच्छा नागरिक बनने मैं सहायक होगा ! आज की कुछ पीढ़ी भी त्याग कर रही है अपनी संस्कृति का ! अपने सादा जीवन का और कहीं – कहीं तो अपने जन्म देने वाले माता – पिता का भी ! ऐसी घटनाएं जब भी सुनता हूँ तो मुझे ये कहानी याद आती है और सोचता हूँ जब नन्हा सा हामिद अपना एक मात्र रुपया भूखा प्यासा रहकर, अपनी खुशियों को त्याग कर अपनी दादी की परेशानी दूर करने के लिए त्याग कर सकता है तो फिर क्यों आज के कई लोग माँ – बाप और अपने बुजुर्गों के लिए त्याग तो दूर उनका ही त्याग कर रहे हैं ! क्यों वे अपनी कमाई का एक छोटा सा हिस्सा भी अपनों के लिए त्यागना नहीं चाहते ! त्याग एक ऐसी चीज है जो आज के युग मैं सिर्फ किताबों मैं ही रह गई है, और आज के युग मैं त्याग करने वाला शायद कुछ मुश्किलों मैं भी रहे, किन्तु अपने छोटे से छोटे त्याग से वह अपनों के चेहरे पर सदा के लिए खुशियाँ ला सकता है और खुद भी जब अपना आत्म विश्लेषण करेगा तो अपने आप मैं आत्म सुख का अनुभव करेगा !
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