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कारवां गुजर गया ………. ( व्यंग )

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SDCनमस्कार, आदाब, साथियों मै सचिन देव अपने फुल्ली फ़ालतू S.D. CHAINAL पर आप सभी दर्शकों का हार्दिक स्वागत करता हूँ, कुछ अटपटी मगर चटपटी ख़बरों के साथ, जिनका आप मजा लीजिए और मजा न आये तो इस लेख को पढकर अपने आप को सजा दीजिए… खैर दोस्तों आज हमारे चैनल की CREATIVE TEAM ने एक नया आइडिया मुझे दिया है की मै कुछ नेताओं और देश की बड़ी हस्तियों से मिलकर उनसे कुछ चटपटे सवाल पुछूं मगर शर्त ये है की उसका उत्तर किसी फ़िल्मी गीत मै होना चाहिए, मैंने सोचा यार ये तो बड़ा मुश्किल टास्क दे दिया मुझे किन्तु मैंने कहा चलो ठीक है यार नया आइडिया है कुछ नया सीखने को मिलेगा तो मै भी निकल लिया अपना नया माइक उठाकर ऐसी हस्तियों की तलाश मैं जो मेरे अटपटे प्रश्नों के चटपटे जवाव फ़िल्मी गीत मै दे सके …

सबसे पहले मेरी मुलाकात हुई कोंग्रेस के हॉटेस्ट स्पीकर दिग्विजय सिंह जी से मैंने सोचा यार इनसे बेहतर इंसान तो आज की तारीख मै कोई हो ही नहीं सकता मेरे अटपटे सवालों के चटपटे जवाव देने के लिए ये तो वैसे ही आजकल अटपटे बयान देने के लिए दबंग फिल्म की मुन्नी की तरह बदनाम हो रहे हैं चलो पारी की शुरुआत इन्ही से करते हैं … ..

दिग्विजय सिंह जी नमस्कार, क्या बात है आजकल तो आप छाये पड़े हो समाचारों मैं, बड़े – बड़े विपक्षी नेता आजकल आपके निशाने पर हैं, आप से सिर्फ एक ही प्रश्न है मेरा, कि आप किसी के बारे मैं भी बोलने से पहले उसे तोलते नहीं क्या? शायद आपने वो कहावत नहीं सुनी तोल – मोल के बोल? आखिर आप ऐसा क्यों और किसकी मर्जी से करते हैं ? और दिग्विजय सिंह जी कृपया अपना जवाव किसी फ़िल्मी गीत मैं दीजिए !

सुनिए दिग्विजय सिंह जी ने कौन सा गीत गाया

“ मेरी मर्जी …..
मैं चाहे ये करूँ मैं चाहे वो करूँ
गोरे को मैं कहूँ काला
जीजा को मैं कहूँ साला
मेरी मर्जी ….
मैं जिसपर चाहे कीचड उछालूं मेरी मर्जी
मैं संसद को मैला कर डालूं मेरी मर्जी
मैं रामदेव को ठग बतलाऊं मेरी मर्जी
मैं अन्ना को ढोंगी बतलाऊं मेरी मर्जी
मेरी मर्जी … मेरी मर्जी …

वाह वाह … बहुत खूब दिग्विजय सिंह जी, क्या गीत सुनाया मेरी मर्जी सही कहा नेता जी लोकतंत्र मैं बोलने की स्वतंत्रता का सही फायदा तो आप ही उठा रहे है! इतना कहकर मैं आगे बढ़ा दिग्विजय सिंह जी बोले, अरे पूरा गाना तो सुनते जाइए ! मैंने कहा नहीं सुनना ! बो बोले क्यों ? मैंने कहा मेरी मर्जी और उन्हें धन्यबाद कहकर मैं आगे बढ़ा तो सौभाग्य से मेरी मुलाकात लालू जी से हो गई मैंने तुरंत उन्हें लपका और अपना प्रश्न उन पर दागा !

लालू जी नमस्कार आपकी पार्टी का हाल तो वेस्टइंडीज की क्रिकेट टीम की तरह हो गया जैसे पहले वेस्टइंडीज क्रिकेट जगत पर राज्य करती थी आप बिहार पर राज्य करते थे, मगर आज आप चुनाव मैं अपनी बुझी हुई लालटेन लेकर अपनी पार्टी से अकेले सांसद हैं जो संसद मैं बैठे अपनी तूती बजाते दिखाई देते हैं, अपनी इस दशा या दुर्दशा पर आप कौन सा गीत हमारे दर्शकों को सुनाना चाहेंगे ?

“ हट बुड़बक, अरे अप डाउन तो आदमी की जिंदगी मैं लौगा ही रौहता है, ओ मा काउन् सा ससुरा पहाड़ टूट पड़ा , हम किंग मेकर हूँ, हम अकेला ही ससुरा पूरी के पूरी फ़ौज के बराबर हूँ हम अकेला हूँ तो का हुआ हम ये गीत गाकर अपने आप को प्रेरणा देता हूँ …

चल अकेला… चल अकेला… चल अकेला.. चल अकेला…
तेरा मेला पीछे छूटा लालू चल अकेला
चल अकेला… चल अकेला… चल अकेला…
ओ तेरा मेला पीछे छूटा लालू चल अकेला ……..

वाह वाह लालू जी वाह वाह व्हाट अ इन्स्पायरिंग सौंग सर जी ….

लालू जी को उनके मेले मैं अकेले छोड़ कर हम आगे बढे तो हमें भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवानी जी टकराए जो की उसी पथ से अपने रथ को लेकर गुजर रहे थे किन्तु देश के अधिकतर पथों की भांति ही उस पथ की हालत भी जर्जर हो चुकी थी, अत: उस गढ्ढा युक्त पथ मैं भाजपा के इस महारथी के रथ का पहिया महाभारत के धुरंधर कर्ण के रथ की तरह धंस गया और ८४ वर्ष की उम्र मैं भी आडवानी जी अपने रथ का फंसा पहिया निकालने का भागीरथी प्रयास करते नजर आये … उन्हें ऐसा करते देख हमारे मुंह से बरबस निकल पड़ा ८४ साल के बूढ़े या ८४ साल के जवान .. आडवानी जी सादर प्रणाम, सर आप धन्य हैं जो अभी भी प्रधानमंत्री बनने की लालसा मैं भाजपा का इतना भारी भरकम रथ अकेले ही खींचने का प्रयास कर रहे हैं, सर अपने इस भागीरथी प्रयत्न के बारे मैं कोई फ़िल्मी गीत सुनाइए हमारे दर्शकों को ! सुनिए आडवानी जी का गीत ….

हम होंगे कामयाब… हम होंगे कामयाब …
हम होंगे कामयाब एक दिन….
हो हो मन मैं है विश्वास पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन …..

बहुत बढ़िया आडवानी जी बहुत बढ़िया इस उम्र मैं भी कामयाब होने की ललक की ये झलक तो भाजपा के किसी युवा नेता मैं भी दिखाई नहीं देती जो आप मैं दिखाई देती है, जय श्री राम ! प्रभु श्री राम आपकी पार्टी की नैय्या एक बार तो केंद्र मैं पार लगा ही चुके हैं इस बार फिर लगा दें इसकी हार्दिक शुभकामनायें आपको …..

जय श्रीराम का उदघोस करते हुए जैसे ही हम आगे बढे हमें वोट फॉर कैश मामले मैं फंसे महान किंग मेकर श्री श्री अमर सिंह जी अपनी पूरी टीम के साथ जेल जाते हुए दिखाई दिए … हमने पूछा अमर सिंह जी बड़े अफ़सोस की बात है की देश की सर्वोच्च सदन संसद मैं आपने ऐसे पैसे लुटवाय थे जैसे कोई नवाव मुजरा सुनते वक्त कोठे पर लुटाता है, मगर आज आपको अपने किये की सजा मिल ही गई और आपको जेल जाना पड़ रहा है ऐसी सिचुएशन मैं आप हमारे दर्शकों को कौन सा गीत सुनाना चाहेंगे ? अमर सिंह जी बिना देरी किये हुए शुरू हो गए, सुनिए क्या गाया उन्होंने …..

कौन किसी को बाँध सका… हाँ ……
कौन किसी को बाँध सका सैय्याद तो एक दीवाना है
तोड़ के पिंजरा एक न एक दिन पंछी को उड़ जाना है

बहुत खूब …. बहुत खूब अमर सिंह जी आप राजनीति के बो कालिया हैं जिसे सर से पाँव तक कितनी भी बेड़ियाँ पहना दी जाएँ मगर देश के किसी भी रणवीर सिंह की जेल कैद करके नहीं रख सकती !.. अमर सिंह जी से मिलने के बाद हमें नहीं लग रहा था की अब किसी और से हमारी मुलाक़ात होगी मगर लगता था आज हमारी किस्मत बहुत तगड़ी थी तभी तो हमें पगड़ी बांधे सामने से माननीय प्रधानमंत्री जी आते हुए मिल गए, नमस्कार सर अहो भाग्य हमारे जो हमें आपका साक्षात्कार करने का मौका मिला, सर वैसे तो आपसे पूछने के लिए ढेरों प्रश्न हैं किन्तु समय की कमी की वजह से एक ही सवाल पूछना चाहूँगा सर, आपकी सरकार मैं शामिल मंत्रीगण देश को ऐसे नोच – नोच कर खा रहे हैं जैस किसी मरे हुए जानवर को गिद्ध सामूहिक रूप से मिलकर खाते हैं और सर, सारा देश जानता है की आप इस गिद्ध भोज मैं कहीं शामिल नहीं हैं किन्तु सरकार के मुखिया होने के नाते आप अपनी सरकार के इन काले कारनामों की जिम्मेदारी से बच नहीं सकते ! आप अपने भ्रष्ट नेताओं को सन्देश देने के लिए कौन सा गीत सुनायेंगे ?

मनमोहन जी बड़ी मंद मंद मुस्कान हमें देते हुए आगे बढ़ लिए किन्तु हमारे फिर से अनुरोध करने पर उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के मंत्रियों की करतूतों पर बड़े ही दुखी मन से एक गीत सुनाया आप भी सुनिए ….

स्वप्न झडे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गए श्रृंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े – खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे

हाथ थे मिले की जुल्फ चाँद की संवार दूं
होंठ थे खुले की हर बहार को पुकार दूं
दर्द था दिया गया की हर दुखी को प्यार दूं
और सान्द यों की स्वर्ग भूमि पर उतार दूँ
हो सका न कुछ मगर
शाम बन गई शहर
वो उठी लहर की ढह गए किले बिखर गए
और हम डरे – डरे
नीर नयन मैं भरे
ओढ़ कर कफ़न पड़े मजार देखते रहे
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ….
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ….

देश के प्रधानमंत्री जी ने ये गीत गाकर अपनी और देश की पूरी व्यथा व्यक्त करके हमारे भावुक मन को भी व्यथित कर दिया और हम फिर किसी और हस्ती का गीत न सुन सके! पर हमने अपने प्रधान मंत्री जी से अनुरोध किया सर आप धर्म से ही नहीं बल्कि देश के भी सरदार हैं, इस भ्रष्ट्राचार रूपी कारवां को यों मूक दर्शक बने खड़े न देखते रहें, वर्ना ये भ्रष्ट्राचारी देश के आम लोगों की सारी खुशियाँ और सपने लूटकर इस कालेधन रूपी कारवां मैं डालकर ले जायेंगे, और हमें तो इसका गुबार देखने को मिल जाए मगर हमारी आने वाली पीढियां, शायद ये गुबार भी न देख सके ! इसी विनम्र अनुरोध के साथ अपने दोस्त सचिन देव को इजाजत दीजिए इस बादे के साथ की

रहा चमन तो फूल खिलेंगे
और रही जिंदगी तो फिर मिलेंगे ….

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