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ये दिल मांगे मोर …….. ( हास्य – कविता )

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छाया है आज नशा बस ज्यादा से ज्यादा पाने का देश मैं चारों ओर
जिसको देखो जिससे पूछो हर कोई बोले ये दिल मांगे मोर……
कि हमारे एक पडोसी ने हमें पीछे से आवाज लगाईं
और बड़े ही ख़ुशी से हमें हमारी पसंदीदा मिठाई खिलाई
हमारे पूछने पर अपनी इस ख़ुशी कि बजह भी बताई
बोले सचिन भाई हमारी पत्नी को दसवां बच्चा हुआ है
हम बोले बधाई हो यार ये तो बहुत ही अच्छा हुआ है
मगर आपको नहीं लगता बच्चों की संख्या कुछ ज्यादा है
भाईसाहब क्या IPL मैं खुद की टीम खिलाने का इरादा है
बोले हो सकता है क्योंकि बीबी कहती है वंस मोर वंस मोर ….
और मैं भी उससे हर बार यही कहता हूँ ये दिल मांगे मोर ….

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मेरे मोहल्ले की एक लड़की सज धज कर मेरे सामने से निकली
हमारी नजर उसके चेहरे पर टिकी नहीं ऊपर से नीचे तक फिसली
देखा थोड़ी आगे एक भंवरा खड़ा था उसके साथ निकल पड़ी ये तितली
शाम को वह लड़की आते मैं मुझे फिर टकराई
तितली तो वही थी मगर भँवरे की सूरत कुछ बदली सी नजर आई
ये देखकर मेरा डबल होर्स पावर दिमाग भी चकराया
मैंने डरते – डरते उस रूपवती की ओर अपना प्रश्न बढाया
हे बालिका तू इस बाली उम्र मैं ये क्या चमत्कार दिखा रही है
जाती किसी के साथ है और लौट कर किसी के साथ आ रही है
हे सुन्दरी मेरे दिमाग मैं छाया कंफयूसन बड़ा घनघोर है
अरे तू इतना तो बता दे इनमे से कौन तेरा चितचोर है
उस रूपवती को मेरी हालत देख शायद बड़ा मजा आया
और उसने हँसते हुए अपना वीको वज्रदंती जबड़ा मुझे दिखाया
बोली न ही सुबह वाला और न ही शाम वाला है मेरा चितचोर
निविदाएँ आमंत्रित हैं लाइन खुली हैं क्योंकि ये दिल मांगे मोर ………

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कि एक खाऊ और पचाऊ नेता के संपर्क मैं जब हम आये
दिल मैं उमड़ते प्रश्नों के बादलों को बरसने से न रोक पाए
हमने पूछा नेताजी पहले हजार, फिर लाख अब लाखों करोड़ खाते हो
जनता की गाढ़ी कमाई पचाने के लिए किस कम्पनी का चूर्ण आजमाते हो
कहीं किसी कोने मैं देश की जनता एक दाने के लिए भी आंसू बहाती है
और तुम नेता जाति को इतना खाने के बाद भी डकार तक नहीं आती है
नेताजी बोले अरे मूर्ख ऐ ऐसी भूख है जिसका है कोई ओर न छोर
जितना चाहे देश का पैसा हजम कर ले फिर भी ये दिल मांगे मोर … ये दिल मांगे मोर……

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