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शिवरात्रि के महापर्व पर जब श्रद्धा से शिव का ध्यान लगाया !
मन मंदिर के ज्ञान चक्षुओं ने खुद को महादेव के समक्ष पाया !
शिव शंकर ने कैलाश शिखर पर था अपना डेरा जमाया
जैसा सुन रखा था शास्त्र मैं वैसा ही रूप शिव का पाया
शिव की महिमा मैं भक्तजन जयकारे लगा रहे थे
महादेव शिव शंकर भोले मस्त हो धूनी रमा रहे थे
देख प्रभु का अधभुत रूप हम मन ही मन हर्षा रहे थे
पर धरती पर मानव जाति के कष्ट हमें याद आ रहे थे
सोचा क्यों न इन कष्टों को महादेव को बताया जाए
और प्रभु से मानव लोक का कल्याण कराया जाए
जैसे ही हमारे पापी मन मैं मानव कल्याण का विचार आया
हमने भी भक्ति मैं लीन हो शिव का जोर से जयकारा लगाया
हमारा जयकारा सुन शिव ने अपना श्रीमुख हमारी ओर घुमाया
और मुस्कुराते हुए हमें अपने नजदीक दे बुलाया
बोले बोलो वत्स क्यों इतनी जोर से चिल्ला रहे हो
लगता है मृत्यु लोक से सीधे यहीं चले आ रहे हो
जो कष्ट है बोल दो अपने कष्टों को हमसे क्यों छिपा रहे हो
प्रभु ने ज्यों ही हमारे जख्मों पर ये मलहम लगाया
त्यों ही हमने धरती पर होते कृत्यों का ब्यौरा दे सुनाया
हे प्रभु वहां मानव लोक मैं तेरे अनुयायी कष्टों से रो रहे हैं
और आप कैलाश पर्वत पर चैन की नींद सो रहे हैं
तुम्हारे भक्त आज भी बम भोले बम भोले के नारे लगाते हैं
पर धरती पर कुछ अधर्मी तेरे भक्तों पर बम चलाते हैं
जो श्रधा से तेरी पिंडी पर दूध चढाते हैं
ये लोग ऐसे मासूमों का खून बहाते हैं
जिस नारी ने जन्म दिया उस पर ही जुल्म ढाते हैं
कामी कपटी इन अबलाओं को अपना शिकार बनाते हैं
दहेज़ के नाम पर इन फूलों को अग्नि दिखाते हैं
जो लोग जनता के सुख के लिए चुने जा रहे हैं
वे ही जनता को दुखों के समंदर मैं डुबा रहे हैं
कहीं भूख से बिलखते बच्चे आंसू बहा रहे है
और कही ये भोगी सुरा की नदियाँ बहा रहे है
हे मेरे भोले बाबा अपना मारक त्रिशूल उठाओ
धरती के इन दानवों को अपना तांडव दिखाओ
पिया था कभी जहर आपने सृष्टि कल्याण के लिए
कलयुग मैं ले अवतार फिर से ये जहर पी जाओ
मेरी बातें सुनकर भोले बाबा मंद – मंद मुस्काये
मैं जानता हूँ सब तूने जितने भी दुखड़े सुनाये
बोले वत्स तू बेकार की जिद पकड़ रहा है
आजकल धरा पर पाप का जहर इतना बढ़ रहा है
कि यदि ये जहर अब मेरे कंठ मैं जाएगा
तो मेरा कंठ भी नीला नहीं काला पड़ जाएगा
मगर जल्द ही पीने ये जहर मैं धरती पर आऊंगा
धर्मियों के लिए छोड़ कर अमृत
पाप का सारा जहर पी जाऊँगा
मगर उस दिन से वत्स मैं नीलकंठ नहीं
दुनिया मैं कालकंठ कहलाऊंगा काल कंठ कहलाऊंगा
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