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गुरु और गोविन्द दोउ खड़े काके लागूँ पायें !
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये !
ऊपर लिखे इस एक दोहे मैं ही शायद गुरु के महत्तव की पूरी परिभाषा छिपी है, साथियों इंसान जब जन्म लेता है तब वेह दुनिया से बिलकुल ही बेखबर होता है, जैसे – जैसे वेह बड़ा होता है अपने घर रूपी पाठशाला मैं अपनी माता अपने पिता और परिजनों से जीने के गुर सीखने लगता है ! फिर थोडा बड़ा होने के बाद वेह पाठशाला जाता है, जहाँ उसका पाला गुरु से पढता है, गुरु उसे जो भी ज्ञान देता है उसी के सहारे वेह जिन्दगी के पथ पर आगे बढ़ता है !
भारतीय इतिहास मैं जितने भी युग पुरुष हुए हैं उनके शौर्य और कीर्ति को बढाने मैं भी उनके गुरुओं का योगदान रहा है, उनमे सर्वप्रथम नाम हमारे जेहन मैं आता है गुरु द्रोणाचार्य जी का जिनकी देखरेख मैं ही अर्जुन ने धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त किया और इतिहास मैं अमर हो गए, यधपि द्रोणाचार्य जी पर अपने शिष्य अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ्र धनुर्धर बनाने के लिए एक तत्कालीन प्रतिभाशाली भील प्रजाति के धनुर्धर एकलव्य के साथ घोर अन्याय का कलंक भी लगा, किन्तु फिर भी उन्होंने अर्जुन को समकालीन सर्वश्रेष्ठ्र धनुर्धर बनाया ! मगर इसके पीछे अर्जुन की लगन और गुरु पर उनकी निष्ठां का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है ! जो भी गुरु ने उन्हें सिखाया उसे उन्होंने मनोयोग से सीखा, और अपना और अपने गुरु का मान बढाया !
दोस्तो गुरु की हर सीख मैं कोई रहस्य छिपा होता है, हो सकता है शिष्य को यह चीज समझ मैं नहीं आ रही हो, और शिष्य को गुरु की सीख पर कभी – कभी शंका होने लगती है मगर ये शंका निराधार होती है एक सच्चा गुरु वही करता है जो उसके शिष्य के हित मैं होता है !
गुरु और शिष्य के इसी रिश्ते की एक कहानी मैंने पिछले दिनों सुनी, जिसने मुझे काफी प्रभाबित किया हो सकता है आप मैं से भी कुछ लोगों ने सुनी हो, उसी कहानी को आपके समक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हूँ : –
बहुत समय की बात है जापान के किसी छोटे शहर मैं एक लड़का रहता था जिसका नाम जिमी था, जिमी को जूडो – कराटे का बहुत शौक था, और उसकी इस प्रतिभा को पहचानते हुए उसके मा – बाप ने उसे उचित प्रशिक्षण दिलाने के लिए एक ऐसे ही गुरुकुल भेजा जहाँ एक बहुत ही प्रतिष्ठित गुरु प्रशिक्षण दिया करते थे ! उन्होंने जिमी को परखा और अपने गुरुकुल मैं दाखिला दे दिया जिमी की खुशियों का ठिकाना नहीं था ! जापान मैं जूडो – कराटे एक खेल ही नहीं बल्कि जूनून है और इसे सिखाने वाले गुरुओं का बहुत सम्मान हुआ करता था, और कोई भी शिष्य गुरु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता था ! और जिमी भी अपने गुरुकुल मैं इन नियमों के तेहत शिक्षा ले रहा था, उसकी प्रतिभा देखकर गुरु जी भी बहुत प्रभावित थे, और एक दिन उन्होंने जिमी से पूछा जिमी तुम इस खेल मैं कहाँ तक जाना चाहते हो? जिमी ने कहा गुरूजी मैं जापान मैं होने वाली सर्वश्रेष्ठ् प्रतियोगिता जीतकर जापान का एक नंबर का कराटे खिलाड़ी बनना चाहता हूँ! गुरु जी ने कहा जिमी तुममे वेह योग्यता है, और आगामी प्रतियोगिता मैं तुम ऐसा कर सकते हो, बस मेहनत और लगन से अभ्यास करते रहो, और जो मैं सिखाऊं, उसे ध्यान से सीखो ! गुरु जी के ये शब्द सुनकर जिमी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ! इस बीच जिमी कुछ दिन की छुट्टियाँ लेकर अपने मा – बाप से मिलने अपने घर आया, जिमी ने अपने मन की इच्छा और गुरु जी की बात अपने माता – पिता को बताई, उन दोनों को भी जिमी पर पूरा भरोसा था और वे अपने बेटे को प्रतियोगिता जीतते हुए देखना चाहते थे ! मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था, छुट्टियाँ बिताने के बाद जिमी अपने घर से वापस गुरुकुल लौट रहा था, और रास्ते मैं उसकी कार एक पेड़ से टकरा गई, जिमी बुरी तरह जख्मी हो गया, किसी तरह उसे अस्पताल पहुँचाया गया जहाँ उसकी जान बचाने के लिए doctors को जिमी का बायाँ हाथ काटना पड़ा ! जिमी को जब होश आया और उसने अपने कटे हाथ को देखा तो वेह बदहवास सा हो गया, एक पल मैं उसके जीवन का सबसे बड़ा सपना बिखर कर रह गया ! उसके माता – पिता अपने बेटे के बिखरे सपनों पर आंसू बहाने की बजाय उसे ढाढस बंधा रहे थे, उनके पास ही जिमी के गुरूजी खड़े थे जिमी गुरूजी को देखकर जोर – जोर से रोने लगा गुरूजी मेरा सपना टूट गया अब मैं कभी नहीं लड़ पाउँगा ! गुरूजी ने उसके कंधे पर हाँथ रखते हुए कहा, नहीं जिमी तुम अभी भी लड़ सकते हो, तुम जल्द ही ठीक हो जाओगे और अस्पताल से छुट्टी होने के बाद दोबारा गुरुकुल आओ और अपना अभ्यास जारी रखो ! जिमी के साथ – साथ गुरूजी की ये बात जिमी के माता पिता को भी सिर्फ जिमी का दिल रखने वाली लगी, मगर वे गुरूजी से ज्यादा कुछ न कह सके ! समय बीतता गया जिमी अपने घर आ गया, जिमी अपने कटे हाथ और टूटे सपने को लेकर बहुत मायूस रहने लगा ! उसको देख – देख कर उसके माता – पिता भी उदास रहते थे, मगर वे मजबूर उसके लिए कुछ नहीं कर सकते थे ! एक दिन अचानक गुरूजी का सन्देश जिमी के लिए आया की तुम अस्पताल से आने के बाद घर मैं क्यों पड़े हो, गुरुकुल क्यों नहीं आये ! जिमी के मा बाप जिमी को लेकर गुरुकुल पहुंचे, गुरूजी ने उनके माता – पिता को कहा की आप लोग इसे यहीं छोड़ जाए, ये अपना आगे का अभ्यास जारी रखेगा ! जिमी को गुरूजी की बात पर विश्वास तो नहीं हुआ फिर भी उसने पूछा गुरु जी क्या सचमुच मैं अभी भी जूडो – कराटे लड़ सकता हूँ ! गुरूजी ने कहा हाँ क्यों नहीं इसीलिए तो मैंने तुम्हे बुलाया है !
दूसरे दिन से गुरूजी ने जिमी को अभ्यास कराना शुरू किया और जिमी को बताया की तुम सिर्फ अपना डिफेन्स मजबूत करो ATTACK के बारे मैं भूल जाओ ! गुरु जी ने महीनो उसे सिर्फ डिफेन्स का अभ्यास कराया ! गुरुकुल के जितने भी अच्छे खिलाडी थे गुरूजी सबसे जिमी को लड़ाते थे और उससे बस एक ही बात कहते थे तुम अपना बचाव करो और कुछ नहीं ! मगर जिमी एक ही अभ्यास करते – करते बोर हो चुका था उसे लगने लगा था की गुरु जी मुझे यों ही बहला रहे हैं और कुछ नहीं भला 3 महीने से सिर्फ डिफेन्स का अभ्यास करा रहे रहे हैं ! फिर एक दिन गुरु जी ने जिमी से कहा आज तुम मेरे साथ अभ्यास करोगे, और उस दिन गुरूजी ने जिमी को जूडो – कराटे का एक खतरनाक हमला करने वाला दाव सिखाया और जिमी को बताया की अब तुम डिफेन्स के साथ – साथ इस दाव का भी अभ्यास करो ! जिमी फिर से डिफेन्स और गुरूजी द्वारा सिखाया गया हमले के एकमात्र दाव का अभ्यास करने लगा ! इस बीच प्रतियोगिता का समय नजदीक आ गया, सारे जापान के गुरुकुलों से सिर्फ एक ही एक प्रतियोगी भेजा जाता था, जिमी को भी ये बात मालूम थी वेह फिर दुखी हो गया की मैं प्रतियोगिता मैं सिर्फ डिफेन्स और एक दाव के भरोसे पर कैसे हिस्सा ले सकता हूँ, अपने कटे हाथ को देखकर उसे फिर अपने सपने ध्वस्त होने का एहसास हो रहा था, आज गुरूजी गुरुकुल के उस खिलाड़ी का नाम ANNOUNCE करने वाले थे जो इस प्रतियोगिता मैं इस गुरुकुल की ओर से शामिल होने वाला था ! सारे खिलाडी नाम जानने के लिए उत्सुक थे मगर गुरूजी ने जो नाम ANNOUNCE किया उसे सुनकर सबको अचम्भा हुआ, और सबसे ज्यादा अचम्भा उस खिलाडी को हुआ जिसका नाम गुरूजी ने चुना था वेह नाम जिमी का था ! गुरूजी बोले जिमी प्रतियोगिता मैं शामिल होने के लिए टोक्यो जाने की तैय्यारी करो ! सभी लोग सोच रहे थे की गुरूजी सठिया गए हैं, अपने और गुरुकुल दोनों का नाम डुबोने की पूरी तैय्यारी कर ली गुरु जी ने ! मगर कोई भी गुरूजी के फैसले का विरोध नहीं कर सकता था !
अन्तोत्गात्वा प्रतियोगिता आरम्भ हुई, और आज जिमी का पहला मुकाबला था जिमी के मा – बाप भी अपने बेटे को लड़ता देखने के लिए टोक्यो पहुँच चुके थे उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था किन्तु शंका उन्हें भी थी, की आखिर जिमी एक हाथ से कितना लड़ सकता है ! मुकाबले से ठीक पहले जिमी ने गुरूजी का आशीर्वाद लिया, रिंग मैं जाने से पहले गुरूजी ने जिमी से कहा जिमी तुम्हे कुछ नहीं करना है सामने वाला कितना भी हमला करे तुम्हे उस पर तब तक हमला नहीं करना है जब तक की मैं तुम्हे इशारा न करूँ ! मैच शुरू हुआ जिमी ने गुरूजी की आज्ञा मानते हुए वैसा ही किया जैसा गुरूजी ने कहा था, जिमी का प्रतिद्वंदी लगातार जिमी पर हमले कर रहा था और जिमी उसे अपने एक हाथ से बढ़ी ही सफाई से सिर्फ डिफेन्स कर रहा था ! इसी क्रम मैं 4 राऊंड गुजर गए, अगला राऊंड शुरू होने से पहले गुरूजी ने कहा, बस जिमी अब तुम्हे उस पर हमला करना है इस राऊंड के मध्य मैं मौका देख कर तुम मेरे द्वारा सिखाया वही एक पंच मार देना तुम मैच जीत जाओगे ! राऊंड शुरू हुआ, जिमी ने ठीक वैसा ही किया जैसा गुरूजी ने उससे कहा था, जिमी का पंच पड़ते ही उसका प्रतिद्वंदी लड़खड़ा कर धराशाई हो गया ! जिमी ने अपना पहला मैच जीत लिया ! जिमी की जीत से सभी चकित थे, मगर जिमी, उसके गुरूजी और उसके माता – पिता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ! खैर प्रतियोगिता आगे बढ़ी, और हर मैच से पहले गुरूजी जिमी को बस यही सबक देते की तुम सिर्फ डिफेन्स करो हमला मैं बताऊंगा कब करना है ! जिमी नतमस्तक हो गुरूजी की आज्ञा का पालन करता रहा और हर मैच मैं सारे प्रतिद्वंदियों को धूल चटाता रहा !
अचानक जिमी मीडिया की वजह से पूरे जापान मैं प्रसिद्ध हो गया, सब लोग चकित थे की एक हाथ से एक खिलाड़ी कैसे बड़े – बड़े खिलाडियों को पस्त कर रहा है !
आज सेमीफाइनल था, जिमी थोडा नर्वस था क्योंकि जिमी का मुकाबला बहुत ही मजबूत खिलाडी से होने वाला था! जिमी की ये हालत देख गुरूजी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा जिमी तुम्हे ये प्रतियोगिता किसी भी हाल मैं जीतनी है और तुम जीत सकते हो ! याद रखो ये तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा सपना है जिसे तुम्हे पूरा करना ही है ! जिमी गुरूजी की बात सुनकर और अपना कटा हाथ देखकर भावुक हो उठा, गुरूजी अगर आज मेरा हाथ सही होता तो मैं आपसे वादा कर देता मगर अफ़सोस…….. ! गुरूजी ने कहा जिमी हिम्मत मत हारो तुम्हारा कटा हाथ ही तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है, जाओ और वैसा ही करना जैसा अब तक करते आये हो ! जिमी ने अपनी भावनाओं पर काबू किया और मुकाबले मैं उतर गया !
सारा देश जिमी पर निगाहें गडाए था, आज क्या होगा जिमी का ! मुकाबला शुरू हुआ, जिमी अपने ऊपर होने वाले हमले रोकता रहा ! इस बार 6 राऊंड पूरे हो चुके थे, मगर गुरूजी ने सातवें राऊंड मैं जिमी को हमले का आदेश दिया ! आदेश पाते ही जिमी का वही गोल्डन पंच हवा मैं लहराया और नतीजा वही प्रतिद्वंदी Knokout किसी को विश्वास नहीं हो रहा था, सिर्फ गुरूजी के अलावा ! जिमी की समझ मैं नहीं आ रहा था आखिर ये क्या हो रहा है, मगर वेह चाहते हुए भी गुरूजी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था !
आज फ़ाइनल था मैदान खचाखच भरा हुआ था, जिमी के माता पिता अपने बेटे के सपने को पूरा होते देखने के लिए उतावले हो रहे थे ! जापानी मीडिया ने जिमी को जापान का हीरो बना दिया था लोग काम छोड़ – छोड़ कर आज जिमी का मैच देखने के लिए T V सेट के सामने जमे थे, सभी जिमी की जीत की कामना कर रहे थे, मुकाबला तगड़ा था !
गुरूजी ने रिंग मैं जाने से पहले जिमी को अंतिम शब्द कहे जिमी तुम्हारा सपना तुम्हारे सामने है, जाओ उसे पूरा करो, अगर आज तुम हार गए तो तुम्हारी यहाँ तक की सफलता को कुछ ही दिन मैं लोग भुला देंगे, मगर तुम आज जीत गए तो तुम हमेशा के लिए इतिहास मैं अपना नाम दर्ज करा जाओगे क्योंकि, दुनिया जीतने वाले को ही याद रखती है, और यहाँ जो जीतता है वही सिकंदर कहलाता है ! जाओ जिमी रिंग मैं जाओ और दिखा दो दुनिया को कि यहाँ के सिकंदर तुम हो ! गुरु जी के इन शब्दों ने जिमी मैं नया जोश भर दिया अब तो जिमी को भी विश्वास हो गया कि आज मैं जीत कर सिकंदर बन सकता हूँ !
फ़ाइनल मुकाबला आरंभ हो चुका था, जिमी के दिमाग मैं गुरु कि सीख और गुरु के अंतिम वचन घूम रहे थे, जिमी का प्रतिद्वंदी जिमी पर ताबड़ – तोड़ हमले कर रहा था, मगर जिमी एक हाथ से किसी ढाल की भांति सारे हमले विफल करता रहा ! मैच अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, राऊंड पर राऊंड ख़तम होते जा रहे थे, मगर गुरूजी जिमी को हमले कि इजाजत नहीं दे रहे थे ! अब अंतिम राऊंड भी आ पहुंचा ! मगर कोई भी खिलाड़ी हारने को तैयार नहीं था, गुरूजी ने कहा जिमी बस इसी राऊंड मैं तुम्हे अपना गोल्डन पंच मारना है और हम सबका मस्तक सदा के लिए ऊँचा करना है ! अंतिम राऊंड भी शुरू हुआ, और राऊंड के मध्य मैं गुरूजी का इशारा मिलते ही जिमी का एक हाथ हवा मैं लहराया और जाकर उसके जबड़े से टकराया ! प्रतिद्वंदी ने लाख कोशिश कि मगर संभल नहीं पाया ! जिमी ख़ुशी से झूम उठा जिमी के साथ – साथ सारा स्टेडियम भी झूम उठा ! गुरूजी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया ! माता – पिता को तो जैसे दुनिया की हर ख़ुशी मिल गई थी जिमी को यों जीतते देखकर !
अंत मैं जिमी को विजेता का ताज पहनाया गया ! जिमी ने माता – पिता का आशीर्वाद लिया माँ अपनी ख़ुशी नहीं रोक सकी और आगे बढ़कर जिमी को बाँहों मैं लेकर उसके ललाट को चूम लिया !
जिमी गुरु जी के चरणों मैं झुका और उनके चरण पकड़कर रोने लगा, गुरूजी ने जिमी को उठाना चाहा मगर जिमी को उठा न सके जिमी एक हाथ से उनके चरणों को बहुत जोर से पकडे हुए था और बस रोये जा रहा था ! आखिर गुरूजी के काफी समझाने के बाद जिमी उठा, तो गुरूजी ने जिमी से पूछा जिमी आखिर बात क्या है, तुम क्यों इस तरह से रो – रहे हो ! जिमी ने कहा गुरूजी मुझे माफ़ कर दीजिये मैंने हमेशा आपकी शिक्षा पर शक किया, मैं आज तक यही सोचता रहा कि गुरूजी, मुझे बहला रहे हैं, और मैं कभी भी एक हाथ से यह प्रतियोगिता नहीं जीत सकता ! गुरूजी आज मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ, कृपया आप मेरे मन कि ये जिज्ञासा मिटाइए कि आखिर मैं ये प्रतियोगिता जीता कैसे, मेरी सबसे बड़ी ताकत क्या थी ?
गुरूजी ने मुस्कुराते हुए जिमी से कहा जिमी मैं पहले भी तुम्हे बता चुका हूँ, कि तुम्हारा कटा हुआ हाथ ही तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है, और इसी कि बजह से ही शायद तुम ये प्रतियोगिता जीत सके हो ! जिमी ने कहा गुरूजी पहेलियाँ न बुझाइए आज आपको बताना ही होगा कि सही बात क्या है ?
गुरूजी ने जिमी से कहा ध्यान से सुनो जिमी, मैंने तुम्हे पहले सिर्फ डिफेन्स करना सिखाया और तुमने उसका इतना अच्छा अभ्यास किया कि कोई भी तुम्हारे डिफेन्स को तोड़ नहीं पा रहा था और सामने वाला खिलाड़ी लगातार तुम पर हमले करता था जिससे उसकी STEMINA कम हो जाती थी, और चूँकि मैंने तुमसे हमला करने को मना किया था इसलिए तुम्हारी STEMINA उसकी अपेक्षा कहीं ज्यादा रहती थी ! फिर जब मैं देखता था कि खिलाडी के REFLETION थोड़े धीमे पड़ रहे हैं तभी मैं तुमसे एकमात्र वेह पंच चलवाता था जिसका तुमने जमकर अभ्यास किया था ! इस पंच कि ख़ास बात ये है कि इसकी सबसे पहली काट सिर्फ तुम्हारा बांया हाथ पकड़कर ही कि जा सकती थी, और तुम्हारा बांया हाथ था ही नहीं, और चूँकि खिलाडी काफी ढीला पड़ जाता था इसलिए वेह और किसी तरह से इसका वचाव नहीं कर पाता था, और इस FRACTION OF SECOND के दौरान ही तुम्हे सही जगह हमला करने का मौका मिल जाता था, और सामने वाला चित हो जाता था !
गुरूजी की ये बातें सुनकर जिमी फिर से भाबुक हो उठा और गुरूजी के चरणों से लिपट कर रोने लगा ! गुरूजी ने उसे उठाया बोले जिमी हमेशा ख़ुशी रहो कभी भी गुरु की शिक्षा पर शक मत करना !
तो साथियों इस कहानी से हमें कई चीजें सीखने को मिलती हैं, सबसे पहली तो ये की जो योग्यता गुरु हममे देख सकता है वेह हम नहीं देख सकते !
दूसरी शिक्षा कोई भी ऐसी चीज जिसे आप अपने जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी समझते हैं हो सकता है, वेह आपकी सबसे बड़ी मजबूती बन जाए जिमी के कटे हुए हाथ की तरह !
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