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नारी + रूप + श्रृंगार + कवि = कविता क्यों है !
सदियों से कवि नारी के रूप की व्याखया कर रहे हैं, और आज भी लगे हैं! नारी के पैर की ऊँगली से लेकर बालों तक पर न जाने क्या – क्या लिखा गया है ! इसीलिए मैं सोच रहा था की यार ये रूपवती नारियां न होती तो ये बेचारे कवियों का क्या होता ये लोग कवितायेँ कैसे लिखते फिल्मों मैं गीत कैसे लिखे जाते ! अपने जमाने के सुपर स्टार राजकुमार मीनाकुमारी के पैर देख कर कैसे कहते ” तुम्हारे पैर देखे, बहुत सुन्दर हैं, इन्हें जमीन पर न रखना, मैले हो जायेंगे ” कैसे ये गाना बनता ” कान मैं झुमका, चाल मैं ठुमका, कमर पे चोटी लटके, रंग है नशीला अंग – अंग है नशीला ” कैसे बच्चन साहब अपने बेटे स्माल बी और बहु बिग ए के साथ कजरारे – कजरारे तेरे कारे – कारे नैना पर झूमते नजर आते ! और तो और इन कवियों ने इन रूपवती नारियों के चक्कर मैं चाँद को भी नहीं बख्शा ” चाँद आहें भरेगा फूल दिल, थाम लेंगे, हुस्न की बात चली तो सब तेरा नाम लेंगे ” बेचारा चाँद ये गीत सुनकर मन मसोस कर रह जाता होगा ! होंटों की तुलना गुलाब की पंखुड़ियों से की जाती रही है, आँखों की झील मैं तो कई कवि ऐसे डूबे की फिर कभी उभर ही नहीं पाए ! जुल्फों पर कवियों ने अच्छे हाथ साफ़ किये हैं, एक कवि की कल्पना देखिये ” कभी – कभी मेरे दिल मैं ख़याल आता है की जिन्दगी तेरी जुल्फों की घनी छांव मैं गुजरती……..” पूरी की पूरी जिन्दगी जुल्फों मैं गुजारने को तैयार बैठा है कवि !
कभी – कभी मुझे बड़ी जलन होती है, यार ये कवियों ने पुरुषों के किसी भी अंग पर कवितायेँ क्यों नहीं लिखीं, सब के सब नारियों के अंग – अंग का वर्णन घुमा फिरा के करते रहते हैं, यार कभी दो शब्द पुरुषों के पूरे नहीं तो किसी एकाध अंग पर ही लिख तो मगर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि कवियों के लिए मेरे शीर्षक वाला फार्मूला काम करता है !
नारी + रूप + श्रृंगार + कवि = कविता
अभी पिछले दिनों मेरे साथ एक अजीब घटना घट गई मैं अपने दोस्त के साथ एक शादी मैं गया, हम दोनों खाना खा रहे थे, तभी एक नारी ने पीछे से मुझे पुकारा ओये सचिन , मैंने अचंभित होकर मुड़कर देखा सामने एक बला की सुन्दर नव योवना खड़ी है, मैं एक टक उसे देखता रह गया मैंने उससे पूछा क्या हम एक दूसरे को जानते हैं ? उसने मुझसे कहा तेरी आँखें इतनी कमजोर हो गईं क्या मुझे नहीं पहचान पा रहा है, मैंने अपने दिमाग की बत्ती जलाई तब बो मुझे पहचान मैं आई, अरे ये तो डौली है, मेरी क्लास मैं पढने वाली लड़की जिसकी ताज़ी – ताज़ी शादी हुई है, मैंने कहा यार डौली माफ़ करना मगर मैं सच मैं तुझे नहीं पहचान सका, तू कितनी सुन्दर लग रही है आज मुझे विश्वास नहीं हो रहा तू वही है, एक बात बता शादी के बाद अचानक तू इतनी सुन्दर कैसे हो गई, डौली बोली अरे idiat देख नहीं रहा है मैंने कितना महंगा makeup किया है, और नारी का रूप makeup से और निखर आता है ! डौली चली गई मेरा दोस्त बोला अबे तू अपने class mate को नहीं पहचान सका, वैसे तो बड़ी अपनी याददाश्त का दम भरता है ! मैंने कहा यार मैंने उसे हमेशा घुटन्ना और उठान्ना पहने देखा है और आज वो साडी मैं सजी संवरी पूरे श्रृंगार के साथ कैसे पहचानता ! दोस्त बोला अबे ये घुटन्ना और उठान्ना क्या होता है ? मैंने कहा अबे आज की पीढ़ी की यही तो दिक्कत है अंग्रेजी बोलूँगा अभी समझ मैं आ जाएगा घुटन्ना मतलब जो घुटने तक आये मतलब स्कर्ट और उठान्ना मतलब जो नाभि से ऊपर उठ जाए मतलब टॉप अब समझ गया होगा तू ! खैर डौली को नारी के रूप मैं पहली बार पूरा श्रंगार किये देखकर मुझ जैसे कबाड़ कवि को भी श्रृंगार रस की कविता सूझी !
काश की मैंने तुझे इस रूप मैं पहले देख लिया होता !
तो किसी तेज गेंदबाज की भांति अपना दिल फ़ेंक दिया होता !
अरे मुझ पर भी ये फार्मूला लागु हो गया !
नारी + रूप + श्रृंगार + कवि = कविता
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